कलेक्टर की रफ कॉपी

दूसरी तीसरी पंक्ति वाले सकपका गए


अंतर विभागीय समन्वय समिति में राजस्व और शहर के मुद्दों पर आमतौर पर चर्चा होती है लेकिन इस बार कलेक्टर साहब ने अचानक ट्रैक बदलकर समीक्षा कर डाली। साहब ने कहा कि टाइम लिमिट वाली बैठक में हर बार राजस्व, एसडीएम और फूड सहित अन्य विभाग के अफसरों का स्टेटस लिया जाता है लेकिन कृषि और वेटरनरी वाले यानि पीछे की पंक्ति वाले बच जाते हैं। यह इस बार सकपका गए। इस बार बैठक में इन अफसरों के कामकाज को टटोला गया। साहब ने इनकी योजनाओं से लेकर ग्राउंड लेवल पर क्या काम चल रहा है,पूरी खबर ली गई। उनसे कहा गया कि कृषि, उद्यानिकी और वेटरनरी वाले अपने आप तालमेल बनाकर काम करें, काम भी ऐसा न करें कि सिर्फ दिखावा हो इसका फायदा जिले के किसानों को दिखना चाहिए। वैसे सच यह है कि हर बार बैठक में आराम से बैठने वाले इन विभाग के अफसरों की बैचेनी अब बढ़ गई है।


ये त्योहारी कार्रवाई संदेह पैदा करती है


 

त्योहार पर फूड वालों का अचानक एक्शन संदेह पैदा करता है। त्योहार क्या पूरा बारह मासी खानपान से लेकर मावा, मिठाई और दूध-दही का कारोबार होता है। छोटा हो या बड़ा कारोबार तो धड़ल्ले से जारी रहता है। अंचल में मिलावट की मंडियों की अफसरों को पूरी खबर है और पता है कि भिंड-मुरैना से सबसे ज्यादा मावा की खेप ग्वालियर आती है। अब त्योहार आते ही अचानक मावा और दूध से बने उत्पादों पर कार्रवाई कर फूड टीम क्या दिखाना चाहती है। त्योहार के नजदीक की कार्रवाई में सबसे पहले कारोबारी हो या जनता यही उनके मुंह से निकलता है कि लो, अब जाग गए क्योंकि त्योहार जो है। जैसे दूसरे खाद्य प्रतिष्ठानों पर शुद्घ का युद्घ जारी किए रहते हैं वैसे मावा कारोबार पर भी सैंपलिंग आए दिन करते रहना चाहिए,जिससे अच्छा मैसेज जाए।


 

आपकी ऑन द स्पॉट सहायता से दोगुनी हुई कतार


हर मंगलवार कलेक्ट्रेट में होने वाली जनसुनवाई में अब कतार दोगुनी होने लगी है। वह इसलिए कि कलेक्टर साहब का ऑन द स्पॉट आर्थिक मदद का स्टायल लोगों को जंच रहा है। सीधे कलेक्टर के सामने अपनी समस्या बताई और मसला आर्थिक सहायता या गरीबी का हो तो साहब के बगल में बैठने वाले रेडक्रॉस के ओल्डमैन नोटों पर उंगलियां मारना शुरू कर देते हैं। वैसे नोट गिनने में तो भले ही समय लग जाता हो लेकिन साहब को देर नहीं लगती। आवेदक की स्थिति और समस्या सुनने के बाद मदद कितनी देना है यह भी साहब किसी से पूछते नहीं और स्वयं आकलन कर तत्काल मदद करा देते हैं। साहब के इस अंदाज के कारण लोगों की उम्मीद और बंध गई है इसलिए अब इस बार हुई जनसुनवाई में कतार इस बार कमरे को पार कर गई थी। वैसे लोगों के लिए यह फीलगुड है।


अस्पतालों पर दोबारा सख्ती करिए साहब


निजी अस्पतालों के घायलों का बिना किसी रूकावट के इलाज करना होगा। निजी अस्पताल एक दिन सप्ताह में निशुल्क ओपीडी चलाएंगे और अस्पतालों के बाहर आई लव माय ग्वालियर लिखवाएंगे। एंबुलेंसों की दलाली नहीं चलेगी और कोई भी मरीज ठगा नहीं जाएगा। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर निर्धारित टाइम में ओपीडी में रहेंगे। मरीजों को पूरी सुविधाएं मिलेंगी। कलेक्टर साहब यह सब आपने पालन कराने के निर्देश दिए थे लेकिन अब ग्राउंड लेवल पर ऐसा कुछ भी नहीं रह गया है। आपके सीएमएचओ और सिविल सर्जन दोनों बदल गए अब तो और व्यवस्थाएं बेहतर होना चाहिए,लेकिन अभी स्वास्थ्य सेवाओं में चाहे वह निजी हो या सरकारी वो दम नहीं दिख रही है। ग्वालियर बड़ा शहर होने के कारण यहां अंचलभर के गरीब लोग आते हैं, बस इनके बारे में जरूर सोचिएगा, क्योंकि ये बड़ी उम्मीद से आते हैं।


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