ग्वालियर। कुंज एकादशी पर शुक्रवार को हवेली श्रीनाथजी की में बने लगभग एक सदी से अधिक पुराने श्रीकृष्ण के मंदिर में होलीउत्सव प्रारंभ हो गया। होली उत्सव के लिए प्राकृतिक फूलों से रंगों को तैयार किया गया। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण को पीताम्बर (पीला) रंग पंसद है। इसलिए पलाश के फूलों से तैयार किए गया पीला रंग पहले भगवान को अर्पित किया गया। इसके बाद सभी भक्तों ने पिचकारी से एक दूसरे पर रंग डाला । इसके बाद रसिया का गायन हुआ, जिसमें सभी भक्तों ने जमकर नृत्य किया और होली उत्सव मनाया।
सराफा बाजार स्थित हवेली श्रीनाथ की में भगवान श्रीकृष्ण का 100 साल से अधिक पुराना मंदिर है। इस मंदिर की देखरेख नागर परिवार द्वारा की जाती है। नागर परिवार के मुखिया यमुनेश नागर ने बताया कि कुंज एकादशी से यहां पर होली उत्सव प्रारंभ हो जाता है। इसमें भगवान के साथ भक्त रंग और गुलाल से होली खेलते हैं। उन्होंने बताया कि बारह महीनों की एकादशियों में आज की एकादशी को कुंज एकादशी कहा जाता है। 500 वर्ष पूर्व महाप्रभु श्रीमद बल्लभाचार्य ने सारस्वत कल्प की लीलाओं को सात्विक, राजस और तामस एवं निगुण भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए प्रभु ने सात्विक भक्तों को दर्शन दिए थे। इन भक्तों की संख्या 84 है। इन्हीं भक्तों की संख्या में 84 खंभों की होली आज के दिन होती है।
ऐसे तैयार होता है प्राकृतिक रंग
बृजेश नागर ने बताया कि भगवान के साथ होली खेलने के लिए पलाश के फूलों से प्राकृतिक रंग तैयार किया जाता है। ग्वालियर जिले में पलाश के फूल घाटीगांव क्षेत्र में मिलते हैं। इन फूलों को लाकर पहले सुखाया जाता है। इसके बाद इन्हें बारीक पीस कर इन्हें खादी के कपड़ों से बनी पोटली में भरा जाता है। इन पोटली को गर्म पानी में उबरने के लिए डाल दिया जाता है। जितनी देर पलाश के फूलों का चूर्ण पानी में उबलता है उतना ही यह रंग छोड़ता जाता है। इस प्राकृतिक रंग से भगवान होली खेलते हैं।