गुना। पेड़ों की कटाई से जंगल मैदान में तब्दील होते जा रहे हैं। इससे मौसम चक्र बिगड़ रहा है, जो तमाम प्राकृतिक संकटों की ओर इशारा कर रहा है। जिसका अहसास हम हर ऋतु में आ रहे बदलाव के रूप में कर भी रहे हैं। यदि हमने अब भी पर्यावरण को बचाने की चिंता नहीं की, तो आने वाला समय गंभीर समस्याओं से भरा होने से कोई नहीं रोक सकेगा। ऐसे में जरूरत पेड़ों को कटने से बचाने की है। होली पर भी हमें लकड़ी की बजाए कंडों की होलिका दहन करने का संकल्प लेना चाहिए। ताकि पर्व का उत्साह और पर्यावरण दोनों ही सुरक्षति रहें। कुछ ऐसे ही त्यौहरों के अनुभव और संकल्प शहर के लोग नवदुनिया के 'आओ कंडों की होली जलाएं' अभियान से जुड़कर ले रहे हैं।
अपने जमाने की होली-
होली का त्यौहार प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है। पर्व की तैयारियां भी कई दिन पहले से हो जाती थीं। होलिका दहन के लिए गोबर की मलरियां बनाई जाती थीं। होलिका की आग से घर के बाहर भी मलरिया जलाकर गेहूं की बालियां सेकी जाती थीं। धुलेंडी के दिन लोगों का एक-दूसरे के घरों पर आना-जाना होता था। इससे आपसी सौहार्द्र का वातावरण निर्मित होता था। वर्तमान समय में भी उसी पुरानी पंरपरा का अनुसरण करने की जरूरत है।
श्रीमती ऊषा शर्मा, गृहणी
एक समय था, जब होली त्यौहार का उत्साह और उल्लास देखते ही बनता था। यूं तो पर्व की तैयारियां कई दिनों पहले हो जाती थीं, लेकिन त्यौहार की शुरुआत होलिका दहन से हो जाती थी। धुलेंडी के दिन एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर आपसी मतभेद दूर किए जाते थे, तो परिवार में भी खूब होली खेली जाती थी। लेकिन आज होली मनाने के तौर-तरीकों में काफी बदलाव आ चुका है। लोगों को मोबाइल ने जकड़कर उत्सव से दूरकर दिया है।
अनसुइया रघुवंशी, सामाजिक कार्यकर्ता
रंगों के पर्व पर होलिका दहन की परंपरा है। लेकिन अब समय को देखते हुए हमें कंडों की होलिका दहन की जरूरत है। इससे न केवल पेड़ कटने से बचेंगे, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षति रहेगा। मैं अपील करूंगा कि होलिका दहन की परंपरा को कायम रखते हुए पर्यावरण को बचाने का संकल्प लें। इसके लिए जरूरी है कि हम कंडों की होली का दहन करें।
अपील-
करतार सिंह, युवा
पेड़ों की लगातार कटाई से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ता जा रहा है। इसलिए पेड़ों को कटने से बचाना होगा अन्यथा आने वाली पीढ़ी को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। मैं जिलेवासियों से यही अपील करूंगा कि यदि होलिका दहन में लकड़ी की जगह कंडों का उपयोग किया जाए, तो परंपरा का निर्वहन होगा, तो पर्यावरण को भी सुरक्षति रख सकेंगे।