राज्यसभा चुनाव का गणित बदला: कोल का इस्तीफा स्वीकार नहीं, त्रिपाठी भी लौटे; अब 3 में से 2 सीटें भाजपा की

भोपाल / पिछले 17 दिन से चल रहा प्रदेश का सियासी ड्रामा लगभग क्लाइमेक्स की ओर है। कमलनाथ सरकार के इस्तीफे के साथ ही राज्यसभा चुनाव में वोटों का अंक गणित भी बदल गया है। अब तीन राज्यसभा सीटों में से दो सीटें भारतीय जनता पार्टी के पास जाने की संभावना मजबूत हो गई है, जबकि कांग्रेस को एक सीट मिल सकती है।


राज्यसभा की सीटों का गणित बदल गया है


कांग्रेस सरकार के जाने के बाद अब 26 मार्च को होने जा रहे राज्यसभा की तीन सीटों का गणित बदल गया है। पहले दो सीटें कांग्रेस के खाते में जाती दिख रहीं थीं, अब दोनों सीट भाजपा को मिलने वाली हैं। ब्यौहारी से भाजपा विधायक शरद कोल का स्पीकर द्वारा स्वीकृत किया गया इस्तीफा रुक गया है। कोल ने ही विधानसभा को लिखकर दे दिया कि उन्होंने कोई इस्तीफा नहीं दिया। इधर, फ्लाेर टेस्ट की कवायद से पहले कांग्रेस के साथ दिख रहे मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने भी अब पाला बदल लिया है। वे शुक्रवार को पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह के साथ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिले। 22 इस्तीफों और दो सीटें खाली होने के बाद अब विधानसभा की प्रभावी सदस्य संख्या 206 है। इस हिसाब से एक सीट के लिए 52 वोटों की जरूरत पड़ेगी। भाजपा के पास दो सीटों के लिए यह नंबर है, लेकिन कांग्रेस को दूसरी सीट के लिए इतने वोट मिलना कठिन है। 


भाजपा अब 107, निर्दलीय शेरा भी साथ, ऐसे में अब अन्य छह की भूमिका अहम नहीं
कोल और त्रिपाठी के भाजपा के साथ रहने पर उनकी संख्या 107 रहेगी। कुल 22 लोगों के इस्तीफे के बाद कांग्रेस 114 से घटकर 92 पहुंच गई है। निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा भी भाजपा नेता नरोत्तम मिश्रा के निवास पहुंच गए हैं। इसलिए बचे हुए तीन निर्दलीय, बसपा के दो और सपा के एक विधायक की भूमिका तीसरी सीट के लिए उतनी अहम नहीं होगी। सभी निर्दलीय, बसपा व सपा यदि कांग्रेस के भी साथ हो जाएं तो तीसरी सीट पर बहुमत हासिल करना आसान नहीं होगा।


सुबह कोल का इस्तीफा स्वीकृत, दोपहर में विस सचिवालय ने बताया - स्वीकार नहीं हुआ


ब्यौहारी से भाजपा विधायक शरद कोल के इस्तीफे को लेकर दिलचस्प स्थिति पैदा हो गई। शुक्रवार सुबह साढ़े 11 बजे स्पीकर एनपी प्रजापति ने कहा कि उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। दोपहर में सदन की कार्यवाही खत्म होने के बाद विधानसभा सचिवालय से बताया गया कि उनका त्यागपत्र स्वीकार नहीं किया गया है। कोल ने विधानसभा की कार्यवाही में भी भाग लिया। सियासी उठापटक के बीच प्रजापति को 6 मार्च को कोल का इस्तीफा मिला था। 16 मार्च को उन्होंने स्पीकर को एक पत्र भेजकर कहा कि दबाव डालकर उनसे त्यागपत्र लिखवाया गया था, उसे स्वीकार न किया जाए।


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